Apr 21, 2013

रहगुजर


ये रासते भी अजीब है,
कहाॅ ले जाऐॅ,  ऩसीब है,
जो सोचा होगा तुमने कभी,
 मिल ही जाएगा, ऐसा तो नहीॅ,
कोशिश तो करता ही है हर एक
कोशिश तो करता ही है हर एक
मगर होता नहीॅ सबका ईरादा नैक।
रहगुजर

मंजिल पहले से पता होति नहीं,
संघर्ष करने की कोई सीमा होती नहीं,
आईने के सामने खडे होकरपुछा खुद से  एक दिन,
कय़ा है बनदे तेरा आसतीतव,
अपने आप से झुठ बोलकर, निकल पडा,
 एक रेहगुजर।
कोई कहेगा, जीने का कया है कारण तेरा,
मैं कहता हुॅ, मैं तो जीता हुु, बस जीने के लिए।
उनसे तो अचछा ही है
जो,
जोसाथ रहकर भी दरद बाट सकते नहीं,
मैं कहता हुॅ, अकेला होना कोई साप नहीं।
ईसी पथ पर था, मैं भी गिर पडा,
उठ खडा ह्आ, और संभाल अपने होश,निकल पडा,
 एक रेहगुजर।
अटल हो, चल ईस मार्ग पर,
की राहें भी थम जाऐं,
जितना मिलना था तुझे भाग्य से,
उससे ज्यादा तूॅ छीन ले जाए।

फिर जब मुलाकात होगी उस आईने से,
उठा कर सिर बोल देना,
मिल कर रहा हुॅ, मैं अपने आप से।

निकल पडा, गंभीर मैं,
राजेश, एक रहगुजर,
एक रहगुजर।


5 comments:

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